पिता अर्थात छायादार वह बड़ा वृक्ष, जिसमें बचपने की गौरेया बनाती है घोसला...। पिता अर्थात वह अंगुली, जिसे पकड़कर अपने पांव पर खड़ा होना सीखता है, घुटनों के बल चलने वाला...। पिता अर्थात वह कांधा, जिस पर बैठकर शहर की गलियों से दोस्ती करता है नन्हा ...
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